शिवसेना बिहार प्रदेश में जिस आक्रामक तरीके से संगठन का विस्तार कर रही है और बिहार के एक-एक बूथ तक जाने की योजना पर काम कर रही है, वह आने वाले दिनों में भाजपा के लिए बड़ा सर दर्द हो सकता है. पिछले विधानसभा चुनाव में शिवसेना 12 विधानसभा क्षेत्रों में तीसरे नंबर पर थी, इन 12 सीटों में केवल 3 पर ही भाजपा के प्रत्याशी जीत पाए थे, वह भी बेहद कम मार्जिन से. ऐसे में यह भाजपा के लिए स्पष्ट संकेत है कि शिवसेना के साथ मिलकर चुनाव लड़े या फिर बिहार में बड़े सियासी नुकसान के लिए तैयार हो जाए.
पिछले विधानसभा चुनाव में जिन 12 सीटों पर शिवसेना के प्रत्याशी तीसरे नंबर पर रहे थे उनमें लौकहा, बोचाहा, लखीसराय, मैरवा, गुरुवा, टिकारी, अमोर, दिनारा, हायाघाट, कुम्हरार, गोविंद गंज और पटना साहिब की सीटें शामिल है. इसमें लौकहा सीट पर शिवसेना प्रत्याशी को तकरीबन 15000 मत मिले थे. लखीसराय जैसे इलाके में शिवसेना ने तकरीबन 12000 वोट झटक लिए. कई सारी शहरी सीटों में भी शिवसेना ने ठीक-ठाक वोट वोट हासिल किए. समझा जा सकता है कि बिहार के हर इलाके में शिवसेना वोटरों से कनेक्ट करने में सफल रही है. शिव सेना के प्रदेश अध्यक्ष कौशलेंद्र कुमार कहते हैं कि पिछले चुनाव के वक्त संगठन इतना सशक्त नहीं था. अब तो हर विधानसभा क्षेत्र में संगठन विस्तार हो चुका है. ऐसे में शिवसेना की अनदेखी एनडीए के लिए भारी पड़ सकती है. शिवसेना को अगर NDA में सम्मानजनक हिस्सेदारी नहीं मिली तो वह तीसरा मोर्चा मना कर हिंदूवादी वोटरों में सेंधमारी कर भाजपा का बड़ा नुकसान कर सकती है.