-जदयू के बागी नेता शरद यादव राज्यसभा से अपनी सदस्यता समाप्त किए जाने के खिलाफ कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे।
शरद यादव ने कहा कि राज्यसभा की उनकी सदस्यता समाप्त किया जाना सही नहीं है। राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू ने जदयू नेताओं के दबाव में आकर संसदीय प्रक्रियाओं और कानून का पालन नहीं किया। लिहाजा हमारे पास कोर्ट जाने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं बचा है। यह फैसला केंद्र के दबाव पर हुआ।
हम देश की 17 पार्टियों को भाजपा और एनडीए के खिलाफ एकजुट कर रहे हैं। इसी वजह से आनन फानन में सदस्यता समाप्त कराने का फैसला कर लिया गया। शरद यादव में कहां की राज्यसभा सदस्यता समाप्त किए जाने की खबर सोमवार की रात 10:20 पर मिली। मुझे सदस्यता जाने का कोई गम नहीं है क्योंकि हम तीन बार सदन की सदस्यता से त्यागपत्र दे चुके हैं। लेकिन सभापति ने कानूनी प्रक्रिया को तार-तार कर दिया, ऐसे मामले संसद की आचार संहिता समिति और विशेषाधिकार समिति को सौंपा जाते हैं। मेरे वकील को भी बात करने का अवसर नहीं दिया गया। देश में 11 करोड़ मामले लंबित है। उस पर किसी का ध्यान नहीं है लेकिन मेरे मामले में सभापति ने तत्काल निपटारा कर दिया। वहीं देश का हजारों करोड़ रुपए लेकर भाग जाने वाले विजय माल्या की सदस्यता के मामले को आचार संहिता समिति को सौंप दिया गया।
जदयू का पलटवार
इसपर प्रदेश जदयू के प्रवक्ता नीरज कुमार ने कहा कि शरद यादव को तर्क से कोई लेना देना नहीं है। वह आजकल जिन लोगों के साथ रहते हैं उनकी संगति का असर उन पर साफ साफ दिखने लगा है। शरद यादव 17 दलों का नेता होने का दावा करते हैं लेकिन सदस्यता जाने के बाद किसी भी राजनीतिक दल ने उनका समर्थन नहीं किया। शरद देश में 11 करोड़ मुकदमे लंबित होने की बात करते हैं लेकिन वह तो न्यायपालिका का विषय है। शरद का मामला तो राज्यसभा के सभापति के अधिकार क्षेत्र में था। उनके फैसले से न्याय की जीत हुई है। खुद को राष्ट्रीय नेता बताने वाले व्यक्ति अपनी सदस्यता बचाने के लिए क्या-क्या कर्म कर सकते हैं शरद इस का जीता जागता नमूना है।