जेडीयू के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव ने आज दिल्ली में अपना सियासी दम दिखाया। बिहार की जमीनी राजनीति में शरद यादव भले ही कमजोर हों लेकिन कई बड़े चेहरों को अपने मंच पर जमा कर इन्होंने बता दिया कि वो आज भी राजनीति का राष्ट्रीय चेहरा हैं। अपनी सियासी राह तलाश करने के लिए विपक्षी दलों को एकजुट करके शरद ने देश की राजधानी में साझी विरासत बचाओ सम्मेलन किया। इस मौके पर शरद खूब बोले। शरद यादव ने कहा कि हिंदुस्तान और विश्व की जनता जब खड़ी होती है तो कोई हिटलर उसे जीत नहीं सकता है। इस सम्मेलन में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी, पूर्व पीएम मनमोहन सिंह, सीताराम येचुरी, गुलाम नबी आजाद, फारुक अब्दुल्ला, रामगोपाल यादव, तारिक अनवर, प्रकाश अंबेडकर, टीएमसी सांसद सुखेंदु शेखर राय, जयंत चौधरी समेत विपक्ष के कई नेता शामिल हुए।
शरद ने आरंभ में ही सम्मेलन की रूपरेखा तय करते हुए कहा कि आज किसान आत्महत्या कर रहे हैं। लोगों का विश्वास टूट रहा है। दलितों व आदिवासियों का अपमान हो रहा है। देश में बेचैनी व भय का माहौल है। लोगों की हत्या हो रही है।
शरद यादव ने पटना में शनिवार को जदयू कार्यकारिणी के समानांतर जन अदालत सम्मेलन बुलाया है। श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल में होने वाले इस सम्मेलन में शरद समर्थक व उनमें निष्ठा रखने वाले लोग जुटेंगे। इसी दिन जदयू अध्यक्ष नीतीश कुमार की अध्यक्षता में पटना में पार्टी कार्यकारिणी की बैठक होनी है। पहले शरद यादव ने नीतीश कुमार से नाखुशी के बावजूद जदयू कार्यकारिणी में शामिल होने और पार्टी फोरम पर अपनी बात कहने का एलान किया था। पर बदली हुई परिस्थितियों में अब इस बात की संभावना कम है कि शरद यादव नीतीश कुमार की अध्यक्षता में होने वाली कार्यकारिणी में शामिल होंगे। पार्टी ने अबतक शरद समर्थकों पर कार्रवाई की है, लेकिन उन्हें सिर्फ राज्यसभा में संसदीय दल के नेता पद से हटाया है। शरद गुट पहले ही पार्टी संगठन पर अपना कब्जा जता चुका है। उनका कहना रहा है कि नीतीश के साथ तो सिर्फ बिहार इकाई और वह भी सरकारी जदयू है, बाकी प्रदेश इकाइयां तो शरद यादव ही साथ हैं।
27 अगस्त को पटना में लालू प्रसाद यादव अपनी पार्टी की मेजबानी में बड़ी रैली कर रहे हैं, इसमें उन्होंने देश के सभी विपक्षी नेताओं को आमंत्रित किया है। यह देखना दिलचस्प होगा कि कानूनी मुश्किलों में घिरे व जांच एजेंसियों का सामना कर रहे लालू प्रसाद के इस मंच को कौन-कौन नेता साझा करते हैं। नीतीश के भाजपा से गंठबंधन से पहले काल्पनिक रूप से विपक्ष के नेतृत्व के लिए बार-बार उनका नाम उछाला जा रहा था। अब यह सवाल है कि विपक्ष का यह नेतृत्व किसके पास होगा। क्या ममता बनर्जी का नाम इसके लिए आगे बढ़ाया जा सकता है।