बीजेपी के प्रदेश उपाध्यक्ष सह राज्यसभा सांसद समीर उरांव ने हेमंत सोरेन के बयान पर पलटवार किया है, उरांव ने कहा कि अगर शिबू सोरेन बहस करने की बात कहें तो शोभा देता। हेमंत सोरेन अभी राजनीति में परिपक्व नहीं हैं। चांदी की चम्मच लेकर पैदा हुए व्यक्ति को सीएम रघुवर दास को बहस की चुनौती देना हास्यास्पद है। विकास की बात वह करता है, जिसने विकास किया हो। हेमंत सोरेन ने तो कभी विकास किया ही नहीं। यह उनकी गलती है ना कि बीजेपी की या मुख्यमंत्री की। भूमि अधिग्रहण कानून का विरोध करने वाले हेमंत सोरेन को बताना चाहिए कि उन्होंने हरमू के लालू उरांव की करोड़ों की जमीन को किस कानून के तहत धोखे से खरीद लिया। आदिवासियों के तथाकथित हितैषी हेमंत सोरेन रामगढ़ के रहने वाले हैं। फिर भी इन्होंने रांची, बोकारो, दुमका में किस कानून के तहत आदिवासियों की जमीन खरीदी।
उन्होंने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि ऐसा क्या है कि हेमंत सोरेन और बसंत सोरेन जब चुनाव लड़ते हैं वह चुनाव हार जाते हैं और जब धीरज साहू जैसे पूंजीपति चुनाव लड़ते हैं तो वह चुनाव जीत जाते हैं। विकास तो पहली बार राज्य की जनता ने रघुवर दास के कार्यकाल में देखा है। लोग हेमंत सोरेन का 14 महीने का कार्यकाल लूट के दौर के रूप में याद करते हैं। जिस स्थानीयता को तय करने की आड़ में हेमंत सोरेन ने अर्जुन मुंडा की सरकार गिरा दी थी। 14 महीनों में वह स्थानीयता तय ही नहीं कर पाए। दलितों के हित की बात करने वाले हेमंत सोरेन को बताना चाहिए कि उन्होंने उनके लिए क्या किया? पहली बार रघुवर सरकार ने अनुसूचित जाति आयोग का गठन किया। समीर ने कटाक्ष करते हुए कहा कि हेमंत सोरेन जी राजनीति कठिन परिश्रम की चीज है, मौज-मस्ती की नहीं। आप का यह हाल है कि निकाय चुनाव में आपने झामुमो से खुद को अलग कर दिया, ताकि कल करारी हार मिलने पर बहाना बना सकें। उन्होंने कहा कि हेमंत सोरेन ने अपने पिता शिबू सोरेन के लिए भी सीट नहीं छोड़ी थी और उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटना पड़ा था। जबकि हेमंत सोरेन की पहचान आज भी शिबू सोरेन के पुत्र के रूप में है। मुख्यमंत्री रहते हुए भी दुमका से चुनाव हार गए थे हेमंत सोरेन। इसलिए उन्हें बड़ी -बड़ी बातें नहीं करनी चाहिए।