बिहार में रविवार को जहानाबाद, भभुआ और अररिया में होने वाले उपचुनाव को लेकर सियासत काफी गरमा गई। सभी पार्टियां अपने-अपने प्रत्याशियों के जीत के दावा कर रही हैं। वहीं एक-दूसरे पर खूब आरोप-प्रत्यारोप लगा रही हैं। देखा जाय तो ये उपचुनाव सभी पार्टियां के लिए उनकी साख का सवाल बन गया है। इसलिए सत्तापक्ष हो या विपक्ष दोनों ही ओर अपने-अपने प्रत्याशियों के लिए धुंआधार प्रचार किया जा रहा है।
राजद के प्रवक्ता चितरंजन गगन ने कहा है कि 11 मार्च को होने वाले उपचुनाव में अपनी हार देखकर भाजपा और जदयू नेताओं की परेशानियां बढ़ गई हैं। जिसकी झलक उनके बयानों में साफ दिखाई पड़ती है। उन्होंने बिहार को अलग राज्य का दर्जा दिए जाने के मुद्दे पर कहा कि एनडीए नेताओं को बयान देने के पहले थोड़ा होमवर्क कर लेना चाहिए। बिहार का जब बंटवारा हुआ उस समय केन्द्र में एनडीए की सरकार थी। 25 अप्रैल, 2000 को बिहार विधानसभा ने सर्वसम्मत प्रस्ताव पास कर केन्द्र सरकार को भेजा। पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी द्वारा तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के समक्ष बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग दुहराई गई। वाजपेयी जी ने अपने संबोधन में तत्कालीन रेलमंत्री नीतीश कुमार की उपस्थिति में राबड़ी जी की मांग पर सहमति व्यक्त करते हुए बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने का आश्वासन दिया था। पर नीतीश जी के साथ दिल्ली लौटने के बाद प्रधानमंत्री द्वारा क्यों चुप्पी साध ली गई। इसका जवाब तो जदयू और भाजपा के नेता को देना चाहिए। 2 अप्रैल, 2002 को बिहार विधानसभा द्वारा सर्वसम्मत प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भेजा गया। 16 मई,2002 को जब राजद के नोटिस पर नियम 193 के तहत लोकसभा में चर्चा हुई और सभी दलों ने बिहार का पक्ष लिया। बिहार के हित की इतनी महत्वपूर्ण चर्चा के दौरान नेता (मंत्री) अनुपस्थित थे। इसे भी जदयू और भाजपा नेताओं को बताना चाहिए। राजद नेता ने बिहार के विकास के मामले में राजद शासनकाल पर सवाल उठाने वाले नेताओं से कहा है कि वे यूपीए और एनडीए शासनकाल में मिले केन्द्रीय राशि और अनुदान का तुलनात्मक अध्ययन कर अपना दिमाग साफ कर लें।