-मनोज कुमार सिंह-
राजनीति गुरु डॉट कॉम द्वारा अखाड़े की राजनीति का जो अंदेशा जताया गया था, उससे हटकर इधर कई दिनों से झारखंड में एक नए प्रकार की आहट दिख रही है। विगत कई दिनों से समाचार पत्र की सुर्खियों में झारखंड के 4 जिलों के अनेकों गांव में पत्थर गढ़ी का कार्यक्रम चल रहा है और उस पत्थर गढ़ी के माध्यम से गांव में प्रशासन के लोगों को या बाहरी लोगों को जाने से रोकने का फरमान जारी किया जा रहा है।
समानांतर सरकार चलाने के लिए लोगों ने गैर संवैधानिक तरीकों को अख्तियार कर रखा है , उनको हल्के में लेना उचित नहीं होगा ।जिस प्रकार संगठित तौर पर यह काम हो रहा है ,उससे एक खतरनाक मंसूबे का अंदेशा होना लाजिमी है लेकिन आश्चर्य तो यह है कि किसी भी जिम्मेदार आदिवासी नेता द्वारा सार्वजनिक तौर पर इस प्रकार के गैर संवैधानिक कार्यों की आलोचना नहीं हो रही है। जिस प्रकार ग्रामीणों द्वारा हथियार के बल पर प्रशासनिक पदाधिकारियों को बंधक बनाया जा रहा है और घुटने टेकने के लिए मजबूर किया जा रहा है, इस प्रकार की गतिविधि राज्य के लिए खतरनाक संकेत हैं ।जिस अखाड़े की राजनीति के स्वरूप की व्याख्या राजनीति गुरु डॉट कॉम द्वारा पूर्व में किया गया था उससे कहीं ज्यादा खतरनाक वर्ग संघर्ष उभरता नजर आ रहा है ।
आखिर राज्य किस दिशा की ओर बढ़ रहा है ,यह चिंतन करना सबका दायित्व है। पांचवी अनुसूची की गलत व्याख्या करके एक संगठित समूह अपनी इतनी ताकत बढ़ा ले कि राज्य का पूरा प्रशासनिक ढांचा उसके सामने विवश और लाचार हो कर चुप तमाशा देखे या तो शायद हिंदुस्तान की पहली घटना मानी जाएगी। इसकी बुनियाद रखने वाले लोगों की मंशा क्या है, यह तो उसी समय पता चल गया था जब इन क्षेत्रों में व्यापक रूप से अफीम की खेती की जाती थी और इन अफीम की खेती करने वालों को सुनहरा भविष्य दिखाकर माफिया और तस्करों का गिरोह भोले भाले लोगों का दोहन कर रहा था ।
उसी समय ऐसी प्रवृति के लोगों की मानसिकता की जड़ों को उखाड़ फेंकने की जरूरत थी। लेकिन पता नहीं किस राजनीतिक मजबूरी के चलते सरकार हाथ पर हाथ धरे तमाशा देखती रही और आज हालात यह हो गए हैं. इस प्रकार की घटनाओं का विस्तार लगातार होता जा रहा है । यहां यह समझना जरूरी होगा कि राज्य में छोटी मोटी घटनाओं पर सड़क जाम करने और आंदोलन करने वाले सामाजिक संगठन के लोग इस मुद्दे पर चुप्पी क्यों साधे हुए हैं, कहीं ऐसा तो नहीं कि उनकी मौन स्वीकृति समाज के एक बड़े तबके को समानांतर सरकार चलाने की दिशा में प्रोत्साहन देना है। खैर इस प्रकार की प्रवृत्ति उस अखाड़े की राजनीति का एक बड़ा हिस्सा भी बन सकती है और ऐसे संगठित समूह अपने घरों में बैठकर क्षेत्र की राजनीति की दिशा और दशा तय करें यह लोकतंत्र के लिए कोई अच्छी बात नहीं है।
एक तरफ राज्य लंबे समय से नक्सलवाद का शिकार होने के चलते विकास से दूर रहा, वहीं दूसरी ओर पत्थर गढ़ी करने वाले और समाज का माहौल बिगाड़ने वाले लोग अपने निहित स्वार्थ के चलते समाज के बड़े तबके को विकास से दूर ले कर जाएंगे ।नक्सलियों के विचार और उससे उपजे भटकाव से समाज का सीधा नुकसान हो रहा था, कालांतर में वह प्रभावित समाज धीरे-धीरे समझने लगा था कि यह नक्सली हमारे लिए कुछ नहीं करते बल्कि हमारा ही शोषण करते हैं . यह लेवी और वसूली से सिर्फ अपने को ताकतवर और मजबूत करने में लगे रहेंगे। अभी इस सच्चाई को समझने में ज्यादा समय नहीं हुआ था कि फिर उन्हें अंधेरे में धकेलने का कुचक्र चालू हो गया ।लेकिन इसके परिणाम दूरगामी होंगे. हम लोग वर्तमान निराशाजनक सामाजिक तस्वीर की तुलना नक्सलवाद से नहीं कर रहे , यह कोई संदर्भ भी नहीं है, लेकिन अगर कोई सामाजिक हिस्सा अपनी व्यवस्था अपने आप ही चलाने लगे तो क्या लोकतंत्र का स्वरूप नहीं बिगड़ेगा!
यह सवाल तो है और इस सवाल पर झारखंड की राजनीति करने वाले लोगों को तत्काल चिंतन करने की आवश्यकता है. अखाड़े की राजनीति में जिस प्रकार लगातार गोलबंदी की घटना बढ़ रही है , उससे तो ऐसा प्रतीत होता है कि अभी भी पूरे राज्य के लिए एक समग्र राजनीतिक दृष्टिकोण विकसित नहीं हो पाया है.
कहने को तो सरकार यह दावा कर रही है कि उन प्रधानों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी जो समाज को गलत दिशा में हो ले जा रहे हैं, लेकिन आदिवासी समाज के अधिकांश लोगों को दिग्भ्रमित करने का काम उसी समाज के कुछ लोगों द्वारा किया जा रहा है. ऐसा लगता है कि इस प्रकार के माहौल को जानबूझकर खड़ा करवाया जा रहा है और इसके पीछे जो लोग भी हैं, उनकी मंशा पाक साफ तो नहीं मानी जाएगी. वैसी स्थिति में उस समाज के जिम्मेदार लोगों को मुखर होकर आगे आना होगा और इस प्रकार की समानांतर सरकार चलाने की मानसिकता से ग्रामीणों को बाहर निकालना पड़ेगा . अभी तक तो इसका विस्तार झारखंड के 4 जिलों में है लेकिन शायद यह और कई जिलों में फैल जाए इससे इनकार नहीं किया जा सकता.
अखाड़े की राजनीति का स्वरूप आगे कैसा होगा, इस पर सबकी निगाहें रहेंगी लेकिन इन घटनाओं से राज्य की ओबीसी जाति के लोग अपने को ठगा महसूस कर रहे हैं क्योंकि लगातार उनके संवैधानिक अधिकारों का हनन हुआ है, बावजूद इसके वह इस प्रकार की घटनाओं पर पैनी नजर रखे हुए है. क्रमशः