राज्य में चुनावी बिगुल बजने में अभी एक साल से ज्यादा का वक्त बाकी है पर पलामू में सियासी पारा गरमाने लगा है. नेताओं का जुबानी जंग शुरू हो चुका है. कोई किसी को एक भी मुद्दे पर भी बक्शने को तैयार नहीं है. एक दूसरे पर तंज कसे जा रहे हैं.
भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष और गढ़वा के विधायक सत्येन्द्र नाथ तिवारी ने विपक्ष पर तंज करते हुए कहा कि विपक्ष पूरी तरह बेरोजगार हो गया है. उसके पास ऐसा कोई काम नहीं है जिससे उसकी जीविका चले, मजबूरी में उसे दूध बेचकर गुजारा करना पड़ रहा है. इनकी स्थिति पर तरस खाकर सरकार जल्द इन्हें कोई रोजगार देगी जिससे जिंदगी की गाड़ी चल सके. राजद नेता गिरिनाथ सिंह ने तीखा हमला बोला, कहा कि यह सच है कि हम दूध बेचते हैं. दारू तो नहीं बेच रहे? लेकिन यह बताने की जरूरत नहीं कि रघुवर सरकार खुलेआम दारू बेच रही है. दूध बेच कर जीवन संवारा जा सकता है। दारू से घर उजड़ते हैं. अब यह सरकार ही तय करे कि वह राज्य में लोगों का घर बसाना चाहती है या उजाड़ना.
उधर, भाजपा नेता सत्येंद्र नाथ तिवारी ने जेएमएम के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री को भी हैसियत बताने की कोशिश की कहा कि हेमंत सोरेन ने जो कुछ भी सीखा है वह भाजपा की ही देन हैं। सोरेन की राजनैतिक स्कूल भाजपा ही रही है। राजनीति का ककहरा हेमंत सोरेन ने भाजपा से ही सीखा है. और आज उसी पर पलटवार कर रहे हैं। यह नहीं भूलना चाहिए की भाजपा उनकी हर सियासी चाल भलिभांति समझती है, संथाल से लेकर पलामू तक उनकी राजनीतिक गणित बिगाड़ने की हैसियत रखती है।
भाजपा विधायक के इस बयान पर जेएमएम के केंद्रीय महासचिव मिथिलेश ठाकुर ने तीखा प्रहार किया। उन्होंने कहा कि विधायक पहले अपने गिरेबान में झांकें। वो तो खुद अपनी जमीन दुरुस्त करें। अपनी सोच-समझ को ठीक करें, कभी जेवीएम तो कभी बीजेपी। पहले यह कोशिश करें की जहां भी जिस दल के साथ हैं उसके विचार से खुद परिचित हों, बाद में नसीहत दें। उन्होंने कहा कि भाजपा विधायक सत्येंद्र तिवारी की राजनीतिक शिक्षा अधूरी है। इसलिए अनाप-शनाप बोलते रहते हैं.
जेएमएम नेता ने कहा कि विधायक जिस हेमंत सोरेने को राजनीति में जीरो बता रहे हैं, शायद उन्हें यह इल्म नहीं है कि राज्य में हेमंत सोरेन ही वह शख्स है जिन्होंने राजनीतिक ज्ञान अपने पिता से बचपन से सीखा है. बल्कि उनके पिता शिबू सोरेन से राजनीति का गुर सीखकर न जाने कितने नेता आज राज्य के मंत्री और मुख्यमंत्री बन गये हैं.
जानकारों की मानें तो पलामू की जमीन वैसे भी सियासी तौर उर्वरा रही है. इस क्षेत्र के नेता सालों फर चुनावी मोड में रहते हैं. और अब तो भाजपा के आक्रामक रुख ने फिजां को कुछ ज्यादा ही गरमा दिया है. लिहाजा, सत्ता और विपक्ष एक दूसरे के उपर लगातार हमला कर अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के साथ ही अभी से सेंधमारी की जुगत में हैं। हालांकि इस जुबानी जंग से किसे कितना फायदा होगा यह तो जनता तय करेगी.