झारखंड के कई सियासी सूरमा कभी राजनीति के सूर्य थे, चमकते थे, उनके आस-पास प्रशंसकों की भीड़ थी। पर आज कोई नहीं जानता कि वह कहां हैं! किस हाल में हैं! यही राजनीति है। ऐसे में राजनीति गुरु ने ऐसे गुमनाम सियासी सूरमाओं की वर्तमान स्थिति को खंगालने की कोशिश की है। आप भी ऐसे लोगों के बारे में जानिये...और यह भी जानिये कि ऐसा क्यों हुआ!
झारखंड आंदोलन में कभी शिबू सोरेन का कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाले पूर्व सांसद सूरज मंडल की राह जुदा हो सकती है, ये किसी ने सोचा नहीं था लेकिन सूरज मंडल आज अकेले झारखंड की राजनीति में अपना अस्तित्व ढूंढ रहे हैं। झामुमो के कद्दावर नेता झारखंड विकास दल बनाकर सियासी जमीन तलाश रहे हैं। कभी सूरज मंडल की पूरे राज्य में तूती बोलती थी। आज सियासी चमक से कोसो दूर हैं कई मौकों पर उन्होंने कहा भी है कि जिन्होंने झारखंड राज्य का विरोध किया था, वे आज लालबत्ती लगी गाड़ी में घूम रहे हैं। जबकि राज्य निर्माण के लिए संघर्ष करने वाले उनके जैसे आज भी संघर्ष कर रहे हैं। उनका कहना है कि झारखंड का गठन जिस उद्देश्य से किया गया वह पूरा नहीं हुआ।
1991 में लोकसभा के चुनाव हुए। झामुमो के छह सांसद चुनाव जीते, जिसमें शिबू सोरेन, सूरज मंडल, शैलेंद्र महतो, साइमन मरांडी, राजकिशोर महतो व कृष्णा मार्डी सांसद बने। इसी दौरान झामुमो सांसदों पर तत्कालीन नरसिम्हा राव सरकार को समर्थन देने के एवज में घूस लेने का आरोप भी लगा। 1994 में बिहार विधानसभा ने झारखंड क्षेत्रीय स्वायतशासी परिषद गठन संबंधी विधेयक पारित किया। 1995 में झारखंड क्षेत्र स्वशासी परिषद (जैक) का गठन हुआ जिसमें शिबू सोरेन अध्यक्ष और सूरज मंडल को उपाध्यक्ष मनोनीत किया गया था।