झारखंड के कई सियासी सूरमा कभी राजनीति के सूर्य थे, चमकते थे, उनके आस-पास प्रशंसकों की भीड़ थी। पर आज कोई नहीं जानता कि वह कहां हैं! किस हाल में हैं! यही राजनीति है। ऐसे में राजनीति गुरु ने ऐसे गुमनाम सियासी सूरमाओं की वर्तमान स्थिति को खंगालने की कोशिश की है। आप भी ऐसे लोगों के बारे में जानिये...और यह भी जानिये कि ऐसा क्यों हुआ!
झारखंड आंदोलन के अग्रणी नेताओं में एक शैलेंद्र महतो का राज्य की सियासत में एक अलग स्थान रहा है। हालांकि उन्होंने कई पार्टियों के दामन थामे इसके बावजूद अपनी सियासी हैसियत को बरकरार रखने भरपूर कोशिश कर रहे हैं। देखा जाय तो उनके राजनीतिक जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए, कई बार तो ऐसा लगा कि उनका राजनीतिक सफर बस खत्म हो चुका है लेकिन उन्होंने सियासत का दामन नहीं छोड़ा।
शैलेंद्र महतो के राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1976 से हुई है तब वे जेएमएम में थे और उन्होंने जमशेदपुर से 1987 में पहली बार लोकसभा का चुनाव जीता, इसके बाद 1990 में भी इसी सीट से जीत दर्ज की। श्री महतो पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव की सरकार में जेएमएम सांसदों को रिश्वत देने के एक आरोपी भी थे। जेएमएम का साथ छोड़ने के बाद उन्होंने बीजेपी, झाविमो, जदयू और आजसू में रहे इसके बाद एक बार फिर बीजेपी का दामन थामा। उनकी पत्नी आभा महतो भी बीजेपी की सांसद रही हैं। शैलेंद्र महतो भी जमशेदपुर से दो बार सांसद रह चुके हैं। इसके साथ ही उन्होंने समरेश सिंह के खिलाफ बोकारो विस सीट से भी किस्मत आजमाया है।
श्री महतो ने अंतिम बार 2009 में जमशेदपुर से चुनाव लड़ा था। सूबे की राजनीति में उनकी शिबू सोरेन और अर्जुन मुंडा से अदावत जगजाहिर रही है। उन्होंने कई बार अर्जुन मुंडा और शिबू सोरेन पर राज्य को लूटने का आरोप भी लगाया।
बहरहाल, इधर कुछ वर्षों से उन्होंने राजनीति से दूरी बना ली है अलग झारखंड राज्य के लिए लड़ाई लड़ने वाले महत्वपूर्ण लोगों को लेकर एक किताब झारखंड की समरगाथा लिखी है।