झारखंड के कई सियासी सूरमा कभी राजनीति के सूर्य थे, चमकते थे, उनके आस-पास प्रशंसकों की भीड़ थी। पर आज कोई नहीं जानता कि वह कहां हैं! किस हाल में हैं! यही राजनीति है। ऐसे में राजनीति गुरु ने ऐसे गुमनाम सियासी सूरमाओं की वर्तमान स्थिति को खंगालने की कोशिश की है। आप भी ऐसे लोगों के बारे में जानिये...और यह भी जानिये कि ऐसा क्यों हुआ!
झारखंड की सियासत में रियासतों का बोलबाला खूब रहा है, एकीकृत बिहार में कई रियासतों ने विभिन्न लोकसभा और विधानसभा सीटों पर अपना परचम लहराया था, लेकिन अलग झारखंड बनने के बाद ये स्थिति धीरे-धीरे बदलती गई। रातू, रंका, नगरउंटारी और रामगढ़ को छोड़कर इनकी सियासत सिमटती गई। आज की तारीख में इनमें से भी किसी भी क्षेत्र में इन रियासतों के वंशजों का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है।
अगर हम बात रामगढ़ की बात करें तो पूर्व विधायक सौरभ नारायण सिंह ने 2005, 2009 में लगातार इस सीट को अपने कब्जे में रखा लेकिन इसके बाद 2014 में उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा और इस सीट को बीजेपी के उम्मीदवार मनीष जायसवाल ने कब्जा कर लिया। हालांकि 2009 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर सौरभ नारायण सिंह ने 66513 मत लाकर बीजेपी के देवदयाल कुशवाहा को पराजित किया था जिन्हें 57226 मत प्राप्त हुए। लेकिन 2014 में उन्होंने लोकसभा चुनाव में हजारीबाग संसदीय सीट से कांग्रेस के प्रत्याशी के रूप में अपना किस्मत आजमाया और बीजेपी उम्मीदवार जयंत सिन्हा के हाथों पराजित हुए।
बहरहाल, सौरभ नारायण सिंह आगामी चुनाव में किस प्रकार अपनी भूमिका निभाते हैं ये देखना होगा, लेकिन जिस प्रकार का सामाजिक समीकरण इस इलाके में तैयार हो रहा है उस लिहाज से फिलहाल इस क्षेत्र की सियासी जमीन राज परिवार के हाथों से निकलती दिखाई दे रही है। हांलाकि वर्तमान पीढ़ी में पूर्व विधायक सौरभ नारायण सिंह कांग्रेस से, उनके चचेरे भाई उदयभान नारायण सिंह और अधिराज नारायण सिंह भाजपा से जुड़े हैं।