झारखंड के कई सियासी सूरमा कभी राजनीति के सूर्य थे, चमकते थे, उनके आस-पास प्रशंसकों की भीड़ थी। पर आज कोई नहीं जानता कि वह कहां हैं! किस हाल में हैं! यही राजनीति है। ऐसे में राजनीति गुरु ने ऐसे गुमनाम सियासी सूरमाओं की वर्तमान स्थिति को खंगालने की कोशिश की है। आप भी ऐसे लोगों के बारे में जानिये...और यह भी जानिये कि ऐसा क्यों हुआ!
झारखंड की सियासत में पलामू के चंद्रशेखर दुबे उर्फ ददई दुबे का जिक्र न हो ऐसा नहीं हो सकता। अपनी बेबाक छवि के लिए प्रसिद्ध ददई दुबे सूबे की सियासत में अलग ही पहचान है। 1970 की दशक से इंटक से अपनी राजनीति की शुरुआत करने वाले ददई दुबे कांग्रेस के संयुक्त बिहार में कद्दावर नेताओं में शुमार थे। 1985-95 तक विश्रामपुर से लगातार विधायक रहे, बिहार में राबड़ी सरकार में मंत्री रहे, फिर 2000-2004 तक झारखंड विधानसभा में विधायक रहे। इसके बाद 2004 में धनबाद लोकसभा सीट से कांग्रेस की टिकट पर जीत दर्ज की और सांसद बने।
अंतिम बार झारखंड के हेमंत सरकार में मंत्री रहे। हालांकि इस सरकार में रहते हुए उन्होंने सीएम हेमंत सोरने के खिलाफ ही आवाज बुलंद कर दी जिसके कारण उन्हें अपना मंत्री पद खोना पड़ा। कांग्रेस में तरजीह नहीं दिए जाने से नाराज होकर उन्होंने 2014 में पार्टी से 40 साल पुराना रिश्ता तोड़कर तृणमूल का हाथ थाम लिया था और धनबाद लोकसभा सीट से किस्मत भी आजमाया पर जीत नहीं मिली। कुछ समय बाद एक बार फिर कांग्रेस में ही लौट आए।
ददई दुबे अपने बेलाग-लपेट दिए गए बयानों के लिए जाने जाते हैं, इसी कारण कभी-कभी उन्हें सियासी नुकसान भी झेलना पड़ता है लेकिन उनकी जमीनी पकड़ के कारण ही वे पलामू सहित धनबाद जैसे सीट से भी जीतने में कामयाब रहे। श्रमिक नेता के रूप में आज भी उनकी खास पहचान है, इसके लिए वे लगातार मजदूरों के बीच उनकी लड़ाई भी लड़ते रहे हैं, और अभी भी सक्रिय हैं।