लंबे समय से जनअधिकार पार्टी (लोकतांत्रिक) के अध्यक्ष और सांसद पप्पू यादव सभी स्थापित नेताओं के खिलाफ बोल रहे हैं. नोटबंदी और जीएसटी को लेकर उन्होंने कई बार नरेंद्र मोदी को निशाने पर लिया. लालू यादव और नीतीश कुमार की आलोचना की. लेकिन पप्पू यादव ने कभी राहुल गांधी के खिलाफ कुछ नहीं कहा. तो क्या इसे पप्पू यादव का कांग्रेस को लेकर सॉफ्ट स्टैंड माना जाए या यह माना जाए कि अगले चुनाव में वह कांग्रेस के साथ जाएंगे!
पप्पू यादव की अभी तक की जो राजनीतिक यात्रा रही है, उसके अनुसार वह गैर भाजपा राजनीति या गठबंधन में ही फिट हैं. पप्पू यादव का आधार समर्थक वर्ग यादव, मुसलमान और अति पिछड़ों का है. कोसी क्षेत्र में सवर्ण मतदाताओं का एक हिस्सा भी उनके साथ रहा है. ऐसे में उनकी राजनीति एंटी बीजेपी ही कमोबेश रही है. शायद यही वजह है कि पप्पू यादव कांग्रेस को लेकर हमेशा सॉफ्ट रहते हैं. पप्पू यादव की पत्नी रंजीता रंजन भी कांग्रेस से सांसद हैं, ऐसे में देर-सबेर उनकी राजनीति का काफिला कांग्रेस के स्टैंड पर ही जाकर रुकेगा, ऐसा जानकारों का मानना है. हालांकि इसमें भी कई पेंच है. एक तो पप्पू यादव की छवि को लेकर कांग्रेस हमेशा सतर्क रही है, दूसरा राजद का मामला. कांग्रेस की बिहार में जो वर्तमान स्थिति है, उसके हिसाब से तो यही लगता है कि राजद को साथ लेकर चलना कांग्रेस की मजबूरी है. साथ ही उपेंद्र कुशवाहा और कुशवाहा वोटरों पर भी कांग्रेस की नजर है.
अब निजाम बदला है. राहुल गांधी की अध्यक्ष पद पर ताजपोशी हुई है, ऐसे में कांग्रेस अगर गुजरात की तर्ज पर क्षेत्रीय युवा चेहरों का कोई अलायंस खड़ा करे तो अलग बात है, अन्यथा राजद कभी पप्पू यादव की पार्टी को कांग्रेस के साथ जाने नहीं देगी. ऐसी परिस्थिति में पप्पू यादव क्या करेंगे!
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए जन अधिकार पार्टी (लोकतांत्रिक) के राष्ट्रीय महासचिव राघवेंद्र कुशवाहा कहते हैं कि पप्पू यादव मास लीडर हैं. वह किसी की बैसाखी पर राजनीति नहीं करते. राघवेंद्र कुशवाहा कहते हैं कि पप्पू यादव ने बिहार में राजनीति का तीसरा मोर्चा खड़ा किया है. कुशवाहा कहते हैं कि बिहार के लोग बड़े भाई और छोटे भाई की सियासत से तंग आ चुके हैं. ऐसे में निश्चित रूप से पप्पू यादव राजनीति का तीसरा रास्ता भी बना सकते हैं और जनता के भरोसे पर खरा उतर कर दिखा भी सकते हैं.