गुजरात चुनाव के नतीजे आ गए हैं. यह नतीजे भाजपा के लिए दो स्पष्ट मैसेज के साथ आए हैं. तकनीकी तौर पर जीत प्रधानमंत्री मोदी के हिस्से आया तो नैतिक हार संगठन के हिस्से. भाजपा ने 92 सीटों का जादुई आंकड़ा पार कर गुजरात में सातवीं बार सरकार बनाने का रास्ता साफ कर लिया है. लेकिन राजनीति के जानकार इस जीत की दोहरी व्याख्या कर रहे हैं और 2019 के लिए एक तरह से जनता-जनार्दन की चेतावनी भी मान रहे हैं.
2012 की तुलना में भाजपा की सीटें और वोट परसेंट दोनों ही गिरी है, साथ ही कांग्रेस की सीटें और वोट परसेंट दोनों ही बढ़ी है. यह भाजपा के अभेद्य गढ़ समझे जाने वाले गुजरात की स्थिति है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के भूमिपुत्र हैं. 14 साल गुजरात के मुख्यमंत्री रह चुके हैं उन्होंने अपने को गुजरात की अस्मिता से जोड़कर एक ऐसा आभामंडल रचा, जिसकी काट कांग्रेस नहीं कर पाई. तो क्या यह माना जाए कि मोदी का जादू तो एक बार फिर चला लेकिन संगठन की कमजोरी पहली बार दिख गई!
राजनीति के जानकार कहते हैं कि 22 सालों तक सत्ता में रहने के बाद भी अगर जनता ने भाजपा को सरकार चलाने का मैंडेट दिया है, तो यह कांग्रेस की कमजोरी है. जो जन संतोष को भूना नहीं पाया. कांग्रेस के नेता यह सोच कर खुश हैं कि उनकी सीटें बढ़ गई, लेकिन राजनीति में जीत और हार मायने रखती है. सभी व्याख्याएं कुछ दिनों बाद बदल जाएंगी. अगर कुछ याद रहेगी तो सिर्फ जीत और हार. यह हार कांग्रेस के लिए भी स्पष्ट संदेश है. कांग्रेस अध्यक्ष ने करीब से चुनाव को देखा और समझा है. इसलिए उम्मीद है कि अगली बार कांग्रेस पूरे दमखम से चुनाव लड़ेगी.