बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने झामुमो महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य के बयान पर पलटवार करते हुए कहा कि नगर निकाय चुनाव में अपने निश्चित हार को देखकर झामुमो के नेताओं ने जनता को दिग्भ्रमित करने का प्रयास शुरू कर दिया है। श्री शाहदेव ने कहा की झामुमो ने स्थानीय नियोजन नीति के मुद्दे पर आचार संहिता का जो आरोप लगाया है वह बेबुनियाद है। समिति ने ना तो कोई आधिकारिक रिपोर्ट सौंपी है और ना ही इस विषय पर कोई आधिकारिक बयान जारी किया है। अखबारों में छपी रिपोर्ट को आधार मानकर अचार संहिता के उल्लंघन का आरोप लगाना हास्यास्पद है। लगता है झामुमो के नेता अब झारखंड के पत्रकारों को पत्रकारिता का पाठ भी सिखाएंगे।
श्री शाहदेव ने कहा के मुख्यमंत्री बनने के बाद से श्री रघुवर दास लगातार पूरे राज्य का दौरा करते रहे हैं। बजट बनाने के लिए ही श्री दास पूरे सरकारी महकमे को लेकर दूरदराज क्षेत्र की जनता के बीच गए थे। और अब योजनाओं के क्रियान्वयन की ग्राउंड रियलिटी देखने के लिए भी मुख्यमंत्री हर हफ्ते हजारों किलोमीटर की यात्रा कर रहे हैं। अब झामुमो के नेता इस बात को इसलिए नहीं समझ पाएंगे क्योंकि उन्होंने अपने कार्यकाल में ड्राइंग रूम में बैठकर योजनाओं को बनाया था। और कभी फील्ड जाकर योजनाओं की स्थिति देखने की कोशिश भी नहीं की। मुख्यमंत्री राज्य के विकास के लिए लगातार भ्रमण करते रहे हैं और करते रहेंगे। इसलिए झामुमो का यह आरोप पूरी तरह से बेबुनियाद है कि मुख्यमंत्री सरकारी तंत्र का दुरुपयोग कर रहे हैं। बीजेपी 'सबका साथ सबका विकास' के मंत्र में विश्वास करती है झामुमो की तरह बाहरी-भीतरी का नारा देकर प्रदेश को अशांत करने का कभी प्रयास नहीं करती। अब हताशा में झामुमो ईवीएम में छेड़छाड़ की संभावना का भी आरोप लगा रहा है। यूपी और बिहार के उपचुनाव में जब विपक्ष की जीत हुई थी तब ईवीएम ठीक हो गए थे। और नगर निकाय चुनाव में अपनी हार को देखकर ईवीएम पर फिर से प्रश्नचिन्ह उठने लगा है। राजनीति में ऐसा दोहरा चरित्र घोर निंदनीय है। वैसे झामुमो और बीजेपी के बीच का मूल अंतर भी साफ दिखता है। किसी भी स्तर का चुनाव हो बीजेपी में साधारण कार्यकर्ता से मुख्यमंत्री तक की सहभागिता और सक्रियता रहती है। लेकिन नगर निकाय चुनाव में झामुमो के शीर्ष के 2 बड़े नेता पूरे सीन से गायब हैं और झामुमो नेतृत्व विहीन ही चुनाव में उतरा हुआ है।