झारखंड में सियासी खिचड़ी पकनी शुरू हो गई है, बीजेपी को मात देने के लिए विपक्षी दल एकजुटता की बात कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि इसको लेकर कई स्तर पर बातचीत हो रही है, सियासी रणनीति भी बनाई जा रही है। जानकारों की मानें तो महागठबंधन की ये पहल उतना आसान नहीं है, जैसा कहा जा रहा है। इसमें कई पेंच हैं जिसे समझना जरूरी है। जेएमएम ने गत विधानसभा चुनाव में 19 सीटें हासिल की थी। वहीं 23 सीटों पर उसके उम्मीदवार दूसरे स्थान पर रहे थे। कहा जा रहा है कि जेएमएम के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन इन 42 सीटों पर तो चुनाव लड़ेंगे ही इसके साथ ही अन्य सीटों पर भी उनकी नजरें गड़ी हैं। ऐसे में कांग्रेस, जेवीएम,राजद और लेफ्ट जैसी पार्टियों के लिए कोई गुंजाइश नहीं रह जाती है।
देखा जाय तो जेवीएम ने गत विस चुनाव में 8 सीटों पर जीत हासिल की थी। वहीं कांग्रेस 6 सीट कब्जा करने में सफल रही थी। जबकि राजद के उम्मीदवार करीब 6 सीटों पर दूसरे स्थान पर रहे थे। तो मासस ने एक सीट जीती जबकि तीन सीटों पर ये दूसरे स्थान पर रही. जेएमएम के सियासी चाल को समझते हुए कांग्रेस ने अपनी रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है। वह चाहती है कि जेएमएम के इतर कांग्रेस,जेवीएम, आजसू और लेफ्ट पार्टियों का गठबंधन तैयार हो, जो बीजेपी का मुकाबला करे। कांग्रेस के रणनीतिकारों का मानना है कि अगर ऐसा गठबंधन बनता है तो राज्य की कई सीटों पर ये जीत का कामयाब फॉर्मूला साबित होगा।
उधर, मान लीजिए कि अगर ऐसा कोई गठबंधन बन जाता है तो जेएमएम की लुटिया डुबनी तय है क्योंकि ओबीसी, आदिवासी, दलित और मुस्लिम का ये समीकरण जीत दिलाने का माद्दा रखता है। हालांकि महागठबंधन की ये कवायद आने वाले चुनाव में कैसा आकार लेती है, ये तो भविष्य के गर्भ में है पर दिलचस्प तो जरूर है।