झारखण्ड की शायद सबसे विवादित मुख्य सचिव राजबाला वर्मा मुख्य सचिव पद से तो 28 फरवरी को रिटायर हो गयीं लेकिन अभी भी झारखण्ड की राजनीति उनके इर्द-गिर्द ही घूम रही है. अभी सत्ता के गलियारे में सबसे अधिक चर्चा इसी बात पर है कि राजबाला वर्मा क्या मुख्यमंत्री की सलाहकार की हैसियत से राज्य मंत्री का दर्जा पा लेगी या उनका मामला किसी तकनिकी पेंच में फंस जायेगा, जिस ओर मंत्री सरयू राय ने कल इशारा किया था. आखिर होगा क्या! क्या मुख्यमंत्री रघुवर दास राजबाला गेम खेल कर पार्टी के आंतरिक असंतुष्टों को व्यस्त किये हुए हैं! या एक दो दिन में राजबाला वर्मा फिर से मुख्यमंत्री को सलाह देती दिखेगी. क्या होगा!
यही क्या....कईयों की नींद उडाये हुए है. इनमें नौकरशाह से लेकर राजनेता और कई बड़े ठेकेदार तक हैं. सबके अपने अपने कारण हैं. जो नौकरशाह राजबाला वर्मा के निशाने पर रहे, वो यह सोचकर दुखी हैं कि अब फिर से उनकी सहमत आएगी. जाहिर हैं ऐसे दुखी और नाराज़ नौकरशाह आधे मन से राजकाज करेंगे. कई नेताओं से राजबाला की खूब पटती थी, ऐसे नेताओं के काम चुटकियों में होते थे, लेकिन कुछ नेता उनकी कृपा से वंचित रहे. ये दर्द कुछ अलग किस्म का है.
तीसरा सबसे बड़े सेक्टर में कुछ ठेकेदार बेहद दुखी हैं. तत्कालीन मुख्य सचिव पर खुलेआम आरोप लगता रहा कि वो चुनिन्दा ठेकेदारों पर ही अपनी कृपा बरसाती रही हैं. ऐसे ठेकेदार तो उनके कार्यकाल में (रोड सचिव भी थी) खूब बड़े हुए लेकिन अधिकांश योग्य और अधिक क्षमता वाले बड़े ठेकेदार लगातार पिछड़ गए, कई तो झारखण्ड को अलविदा कह गए. वो देश के दुसरे राज्यों में कई सौ करोड़ के काम कर रहे हैं, अच्छी गुणवत्ता के लिए प्रशंसा बटोर रहे हैं, लेकिन मैडम की नाराजगी के चलते झारखण्ड में उन्हें अपनी क्षमता दिखाने का मौका तक नहीं मिला.
इन्हीं तीन श्रेणियों के लोग खुश या दुखी हैं. अब देखना यह है कि जिसे मुख्यमंत्री ने जिन्हें दंड स्वरूप खुद ही चेतावनी दी, उन्हीं से सलाह लेते हुए दिखेंगे या कुछ और होगा.