पत्थलगड़ी को लेकर दिनोंदिन विवाद गहराता जा रहा है, सरकार द्वारा ईसाई मिशनरियों को निशाने पर लेने से आनेवाले दिनों में इस पर सियासी गोलबंदी होना तय है। जहां एक ओर सरकार इस मुद्दे को लेकर बेहद सख्त है वहीं सत्ताधारी दल के कई आदिवासी नेता इस मामले को तुल नहीं देना चाहते हैं। बहरहाल, बीजेपी अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुवा ने सीधे तौर पर चर्च पर आरोप लगाते हुए कहा है कि पत्थलगड़ी के पीछे उसका ही दिमाग और धन दोनों है। वहीं सीएम रघुवर दास ने भी खुले तौर पर उन्हें राष्ट्रविरोधी ताकत बताते हुए उन पर कार्रवाई करने की बात कही है। देखा जाय तो खूंटी सहित राज्य के कई जिलों में ईसाई मिशनरियां पहले से भी आरएसएस के निशाने पर रही हैं। कई बार संघ से जुड़े कार्यकर्ताओं ने ये आरोप भी लगाया है कि सेवा की आड़ में ये संस्थाएं भोले-भाले आदिवासियों को भड़काती हैं, उन्हें लोभ लालच देकर जबरन ईसाई बनाती हैं।
हालांकि कई आदिवासी संगठन सरकार और सीएम की इस बात से जरा भी इत्तेफाक नहीं रखते की पत्थलगड़ी के पीछे राष्ट्रविरोधी शक्तियां या कुछ असमाजिक तत्वों का हाथ है जो इसके आड़ में अफीम का अवैध कारोबार कर रहे हैं। राज्य के सबसे बड़े दल जेएमएम के मुखिया शिबू सोरेन सरकार के आरोप और दावों को सिरे से खारिज कर दिया है उनका मानना है कि पत्थलगड़ी को लेकर सरकार बेवजह का भ्रम बना रही है जबकि ये आदिवासी समुदाय की परंपरा का हिस्सा है।
उधर, सरकार के बयानों से सूबे की सियासत गरमाती जा रही है, कई संगठन पत्थलगड़ी के विरोध और समर्थन में आमने-सामने आ गए हैं। जानकारों की मानें तो इससे न सिर्फ राज्य में तनाव बढ़ेगा बल्कि आनेवाले दिनों में राज्य में राजनीतिक लामबंदी भी शुरू हो जाएगी। वैसे भी जिस प्रकार बीजेपी की ओर से माहौल बनाया जा रहा है उसमें अगर इस साल के अंत तक चुनाव होते हैं तो कुछ सियासी दल जरूर चाहेंगे की पत्थलगड़ी की आड़ में सियासी रोटी भी सेंकी जाय।