सूबे की सियासत में धीरे-धीरे चुनावी रंग घुलने लगा है, हर पार्टी अपने-अपने तरीके से मिशन 2019 की तैयारियों में जुट गई है। सत्ताधारी एनडीए की सहयोगी आजसू ने भी राजनीतिक दांव खेलना शुरू कर दिया है। वैसे भी पार्टी सुप्रीमो सुदेश महतो ने सत्ता में रहकर भी सरकार के कई फैसलों का विरोध किया है। उन्होंने एनडीए के पार्टनर रहते हुए बराबर सरकार को यह जताने की कोशिश की है कि राजनीति तो वह अपने अंदाज और शर्तों पर ही करेंगे।
इसी कड़ी में गत रविवार को उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं को बखूबी बता भी दिया है कि झारखंड जिस दिशा में जा रहा है वह झारखंडियों के हित में नहीं है। झारखंड का जिस गति से विकास होना चाहिए, वह नहीं हुआ। पहले तो मजबूरी थी कि बहुमत की सरकार नहीं थी। लेकिन 2014 में तो पूर्ण बहुमत की सरकार बनी, हमने पार्टी को नुकसान पहुंचाकर गठबंधन धर्म का पालन किया। फिर भी विकास की गति धीमी रही।
राज्य में पहली बार बहुमत की सरकार बनी तो लोगों को लगा कि झारखंडियों का विकास होगा, लेकिन अब स्थानीय लोग ही छले जा रहे हैं। स्थानीय लोगों को नौकरी नहीं दी जा रही है।
जानकारों की मानें तो आजसू स्थानीय नीति, नियोजन नीति सहित पिछड़ों के आरक्षण को लेकर सरकार के टालमटोल से खुश नहीं है। इसके साथ ही पार्टी नेता इन मुद्दों को लेकर पूरे राज्य में पनप रहे असंतोष को भी समझ रहे हैं। वे जानते हैं कि मूलवासियों की वाजिब मांगों को यदि नजरअंदाज किया गया तो सियासी जमीन खिसक सकती है।
ये बातें कहीं न कहीं आजसू का शीर्ष नेतृत्व भी भांप रहा है इसीलिए आगामी विधानसभा चुनाव के लिए अभी से ही मूलवासी वोटरों के बीच अपनी पैठ मजबूत करने में लगा है। वहीं यह भी ऐलान कर चुका है कि पार्टी सभी 81 सीटों पर अपने दम पर चुनाव लड़ेगी।