झारखंड के पहले पहले मुख्य सचिव वीएस दुबे ने बताया था सरकारी फार्मूला
राघवेन्द्र
राजनीति की जटिलताएं भी अजीब हैं | यह आम आदमी के नहीं ख़ास अधिकारियों के बनाये फार्मूले पर चलती है | सिमडेगा की 10 साल की बिटिया संतोषी नायक की भूख से हुई मौत के बाद जब पूरा सरकारी अमला इसे मलेरिया डेथ बोलने लगा, वो भी दूसरे गांव के एक झोला छाप डॉक्टर के कहने पर तो मुझे बहुत अफ़सोस नहीं हुआ. मैंने अपने 28 साल की यात्रा में ऐसे ढेर सारे पैंतरे देखे हैं. अधिकारियों का फरेब और राजनीति को उस झूठ का सजदा करते देखा है |
मुझे एक प्रसंग याद आ रहा है | मोतिहारी या बेतिया में किसी गांव में भूख से एक वृद्ध की मौत हो गयी थी, मुखिया से लेकर सभी जमीनी जिम्मेवारों ने लिखकर भी इस बात की तस्दीक की थी | मृतक के घर में एक दाना अनाज नहीं था | चूल्हे की शक्ल बता रही थी कि वो कई दिनों से जला नहीं है | पूरी झोपडी में दो टूट हुए अलमुनियम के बर्तन थे | सच चीख-चीख कर कह रहा था कि वहां कई दिनों से भूख वृद्ध के सिरहाने बैठी थी | जिला से रिपोर्ट आई और पुरे तथ्यों की रौशनी में छपी|
दूसरे दिन से आईएएस अधिकारियों की तेज़ राजनीति शुरू हो गयी | मैं प्रभात खबर पटना में था उनदिनों | हमारे अखबार पर केस कर दिया गया | हम देख रहे थे सच पर हमें साबित करना था कि यही सच है | ऐसे में मैंने न्यायप्रिय अधिकारी और झारखंड के पहले मुख्य सचिव (वो बिहार के भी मुख्य सचिव रह चुके थे) वीएस दुबे से बात की| उनसे तकनीकी जटिलता का जिक्र किया | उन्होंने छूटते ही कहा कि आपके अखबार ने सच छापा है, मैं जानता हूं लेकिन आप इसे सत्यापित नहीं कर पाएंगे |
अब चौंकने की बारी मेरी थी | उन्होंने कहा कि आप लोगों ने कालाहांडी के महाअकाल और कईयों के भूख से मरने की खबर छापी लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में वहां कोई भूख से नहीं मरा | जब भी कोई शख्स कई दिनों से अन्न नहीं खायेगा तो या तो मिटटी या कोई जहरीला साग वगैरह खा लेता है क्षुधा वस| ऐसे में उसे आंत्रशोध या कोई और बुखार या बीमारी हो जाती है | जब ऐसे आदमी का पोस्टमार्टम होता है तो मौत की तात्कालिक वजह तो कुछ और ही होगी | अधिकारी इसी का फायदा उठाते हैं | राजनीति इसी झूठ का सहारा लेती है | झारखंड के सिमडेगा में भी डीसी मंजुनाथ भजन्त्री यही कर रहे हैं | रघुवर दास सरकार में इतनी नैतिक ताकत तो है नहीं कि सिविल सोसाइटी की एक तटस्थ टीम भेजकर सच का पता लगा लें | उन्हें तो अधिकारी की ही भाषा बोलनी पड़ेगी | आखिर में 10 साल की झारखंड की वह बेटी तो भात-भात बोलकर मर गयी | अगर वह किसी नेता या हाई प्रोफाइल की बेटी होती, तब तो यह सिस्टम जागता |
इस निष्ठुर राजनीति और सरकारी झूठ पर अब लज्जा भी नहीं आती, तरस आता है ऐसे सिस्टम पर जो विकास का नया नया जुमला गढ़ रहे हैं | किसका विकास | क्या चंद लोगों का |