त्रिपुरा में बीजेपी के हाथों मिली करारी हार से माकपा बुरी तरह तिलमिलाई हुई है, दो दशक से ज्यादा समय तक एकछत्र राज करने के बाद मिली इस हार ने पार्टी को आत्ममंथन करने पर विवश कर दिया है। पार्टी के कई नेताओं ने ये तय किया है कि अब पहले की रणनीति पर चलने से नहीं चलेगा, सबकुछ बदलना पड़ेगा। क्योंकि जिस प्रकार बीजेपी की रणनीति का असर पश्चिम बंगाल और फिर केरल में हो रहा है इससे पार्टी पहले से ही घबराई हुई है। इसलिए त्रिपुरा में बीजेपी के हाथों मिली करारी हार के बाद माकपा में व्यापक पैमाने पर बदलाव की तैयारी है। नई रणनीति के तहत पार्टी में युवाओं को ज्यादा से ज्यादा मौका दिया जाएगा। पश्चिम बंगाल के माकपा सचिव सूर्यकांत मिश्रा ने बताया की पार्टी ‘अप्रत्याशित’ बदलाव के दौर से गुजर रही है।
इसका उद्देश्य पार्टी कार्यकर्ताओं और शीर्ष स्तर के पदाधिकारियों की औसत उम्र में कमी लाना है। सूर्यकांत मिश्रा ने मंगलवार को इसकी जानकारी दी। उन्होंने कहा, ‘पार्टी का अभूतपूर्व तरीके से पुनर्गठन किया गया है। मैं पूरे विश्वास से कह सकता हूं कि मैंने पहले ऐसा कभी नहीं देखा। कोलकाता में चल रहे तीन दिवसीय सम्मलेन में स्टेट कमेटी के सदस्यों की उम्र सीमा तय करने पर फैसला लिया जाएगा।’ इसके अलावा बुजुर्ग नेताओं को रिटायर भी किया जाएगा। जानकारी के अनुसार, माकपा में फिलहाल स्टेट कमेटी के सदस्यों की औसत उम्र 60 वर्ष है, लेकिन अधिकतर कद्दावर नेता 70 साल के होने के बावजूद पद पर काबिज हैं। ध्यान रहे कि दिसंबर, 2015 में कोलकाता में ही पार्टी की बैठक आयोजित की गई थी। इसमें निर्णय लिया गया था कि 70 वर्ष की उम्र होने के बाद पार्टी सदस्यों को एरिया लेवल कमेटी की सदस्यता त्यागनी पड़ेगी। जिला स्तरीय समिति के लिए 72 साल की उम्र सीमा रखी गई थी। त्रिपुरा में पार्टी की करारी हार के बाद एक बार फिर से पार्टी में युवाओं को शामिल करने की जरूरत महसूस की जाने लगी है।
सूर्यकांत मिश्रा का दावा है कि इस दिशा में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। इसके बावजूद पश्चिम बंगाल में सत्ता से बेदखल होने के बाद राज्य में भाजपा का प्रभाव लगातार बढ़ता जा रहा है। वहीं, माकपा पिछड़ती जा रही है। उन्होंने बताया कि पार्टी की अधिकतर समितियों के लिए सदस्यों की उम्र तीन साल कम की जा चुकी है। सूर्यकांत मिश्रा का दावा है कि कुछ समितियों में तो सदस्यों की उम्र सीमा 5-6 साल तक कम की गई है। उनके मुताबिक, विभिन्न समितियों में युवाओं की तादाद लगातार बढ़ती जा रही है। पश्चिम बंगाल के बाद त्रिपुरा को वामदलों का गढ़ माना जाता था, लेकिन इस बार के विधानसभा चुनावों में यह किला भी ढह गया। अब सिर्फ केरल में ही वाम मोर्चा की सरकार है। बता दें कि आने वाले दिनों में पश्चिम बंगाल में राज्यसभा की पांच सीटों के लिए भी चुनाव होने हैं।