-इससे तय होगी मुख्यमंत्री पद की उपेंद्र कुशवाहा की दावेदारी
पटना का ऐतिहासिक गांधी मैदान 15 अक्टूबर को एक बार फिर दिलचस्प राजनीतिक दंगल का गवाह बनने वाला है। इस दिन शिक्षा सुधार महासम्मेलन के बहाने रालोसपा प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा सूबे में बढ़ रही अपनी ताकत का अहसास अपने सहयोगियों और विरोधियों को कराना चाहते हैं। इस दिन यह तय हो जाएगा कि सूबे का कुशवाहा समाज कितनी शिद्दत से उपेंद्र कुशवाहा को प्रदेश की नंबर वन की कुर्सी पर बिठाना चाहता है। इसी दिन यह भी तय हो जाएगा कि उपेंद्र कुशवाहा आगे अपने विरोधियों और सहयोगियों के साथ किस अंदाज से और किस हैसियत से बात करेंगे। महासम्मेलन के आयोजकों का दावा है कि इसमें प्रदेश भर से पांच लाख लोग जुटेंगे। लेकिन जानकार बताते हैं कि अगर इस दावे के आधे लोग भी गांधी मैदान में आ गए तो उपेंद्र कुशवाहा 2019 और 2020 में होने वाले जंग के केंद्र में होंगे और इन दोनों लड़ाइयों में वही सेना जीत के करीब होगी जिस सेना का नेतृत्व खुद कुशवाहा करेंगे। यही वजह है कि उपेंद्र कुशवाहा सहित पार्टी के सभी पदाधिकारी और कार्यकर्ता इस महासम्मेलन को सफल बनाने में रात दिन लगे हुए हैं।
तैयारी नई नहीं हो रही है बल्कि कहा जाए तो आज से छह माह पहले ही यह तय हो गया था कि गांधी मैदान में एक बड़ी रैली करके अपनी ताकत का प्रदर्शन करना है। खोज मुद्दे की हो रही थी और टॉपर घोटाला से लेकर परीक्षा में कदाचार ने उपेंद्र कुशवाहा को रास्ता दिखलाया। राजगीर के शिविर में यह तय हो गया कि शिक्षा बचाओ आक्रोश रैली के बहाने अपने सारे समर्थकों को गांधी मैदान में जुटाया जाएगा। जिला स्तर पर सम्मेलनों का दौर भी शुरू हो गया। लेकिन इस बीच बिहार का सियासी गणित बदल गया और जदयू ने एनडीए के साथ सरकार बना ली। इसलिए आक्रोष को गौण करना मजबूरी हो गई। काफी सोच विचार के बाद रैली का नाम शिक्षा सुधार महासम्मेलन रखा गया। नाम बदलने की औपचारिकता पूरी करने के बाद दोगुनी ताकत के साथ रालोसपा के कार्यकर्ता और पदाधिकारीगण रैली को सफल बनाने में जुट गए हैं।
सभी जानते हैं कि उपेंद्र कुशवाहा संगठन के मंझे हुए खिलाड़ी हैं। इसलिए उन्होंने इस बार रैली में भीड़ जुटाने की रणनीति को कुछ बदल दिया है। सूबे के ऐसे तीन सौ गांवों का चयन किया गया है जहां उपेंद्र कुशवाहा समर्थकों की संख्या बहुत ज्यादा है। इन गांवों के सभी घरों में दस्तक देने की योजना पर तेजी से काम हो रहा है। रालोसपा नेता एक दो की संख्या में नहीं बल्कि समूह में हर एक के घरों में जा रहे हैं और लोगों को यह समझा रहे है कि अगर उपेंद्र कुशवाहा को सीएम बनाना है तो 15 अक्टूबर को पटना आना ही होगा। इन तीन सौ गांवों से लोगों को पटना लाने के भी खास इंतजाम किए जा रहे हैं।
इसके लिए भी इस बार नया सिस्टम बनाया गया है। गांव में सभा के दौरान ही पटना आने जाने और खाने में होने वाले खर्च को चंदे के तौर पर जमा करा लिया जा रहा है। लोग स्वेच्छा से एक अधिकृत व्यक्ति को पैसा दे रहे हैं और वही अधिकृत आदमी उस गांव से लोगों को लाने जाने और खाने के लिए उत्तरदायी बनाया गया है। पटना मुख्यालय से उस अधिकृत आदमी से सीधा संवाद रखा जा रहा है। रोजाना की गतिविधियों से वह शख्स पटना अपने मुख्य कार्यालय को अवगत करा रहा है। यह व्यवस्था सूबे के तीन सौ गांवों में लागू कर दी गई है और पार्टी से जुड़े लोग बता रहे हैं कि इन गांवों से रोज का फीडबैक पार्टी को शाम होते होते मिल जा रहा है। इन तीन सौ गांवों में तो खास फोकस है ही इसके अलावे अन्य क्षेत्रों में भी टीम होमवर्क कर रही है। रालोसपा का पटना कार्यालय रोजाना एक रिपोर्ट तैयार कर रहा है जिसमें यह उल्लेख किया जा रहा है कि पार्टी आज के आज किन किन नए इलाकों में संपर्क साधने में सफल रही और वहां रैली को लेकर कैसा उत्साह है। जो इलाके कमजोर निकल रहे हैं उसके लिए खास टीम का गठन किया जा रहा है और उन्हें उन इलाकों में कैंप कराया जा रहा है। कहा जाए तो उपेंद्र कुशवाहा हर वह जतन कर रहे हैं जिससे रैली में रिकार्ड तोड़ भीड़ जुट सके। यही वजह रही कि उन्होंने भीड़ जुटाने के सिस्टम को दुरुस्त किया है।
राजनीतिक गलियारों में अब यह सवाल उठाए जा रहे हैं कि अभी उपेंद्र कुशवाहा को शिक्षा सुधार महासम्मेलन करने की जरूरत क्यों पड़ गई। क्या वह एनडीए को बाय-बाय कहने वाले हैं या फिर अपने समर्थकों की भारी भीड़ पटना में जुटाकर अपनी ताकत का अहसास करना चाह रहे हैं। पार्टी के कोषाध्यक्ष राजेश यादव कहते हैं कि यह महासम्मेलन किसी के विरोध में नहीं बल्कि शिक्षा में सुधार के लिए है। हमलोग मजबूती से एनडीए के साथ हैं और रहेंगे इसमें दो राय कहां है। लेकिन शिक्षा जैसे अहम मुद्दे पर लोगों को जागरूक करना और इसमें सुधार की कोशिश करना पार्टी अपनी जिम्मेदारी समझती है और इसी मकसद से हमारे नेता उपेंद्र कुशवाहा ने 15 अक्टूबर को सभी को आमंत्रित किया है। राजेश यादव ने तो अपनी बात कह दी लेकिन क्या बात इतनी सरल है क्या। रैली की तैयारी जिस स्तर पर हो रही है उसे देखकर तो ऐसा नहीं लगता कि इस महासम्मेलन का एक मात्र मकसद शिक्षा में सुधार को लेकर लोगों को जागरूक करना है। जानकार बताते हैं कि रालोसपा की इस प्रस्तावित रैली का असर बिहार की राजनीति में पड़ना तय है।
दरअसल उपेंद्र कुशवाहा इस समय एक दुविधा में हैं। उपेंद्र कुशवाहा को यह अहसास अच्छी तरह है कि नीतीश कुमार के एनडीए में आ जाने के बाद उनका ठिकाना पहले की तरह सुरिक्षत नहीं रह गया है। नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने सूबे में एक कुशवाहा चेहरा के तौर पर उपेंद्र कुशवाहा को अपना हमसफर बनाया था। लेकिन अब लव कुश के तौर पर नीतीश कुमार खुद एनडीए में हैं। ऐसे में यह खुशफहमी पालने की गलती उपेंद्र कुशवाहा नहीं करना चाहते हैं कि आगामी चुनावों में उन्हें मनमुताविक सीटें मिल जाऐगी। अभी संतोष कुशवाहा को मंत्री बनाने को लेकर जो विवाद हुआ था उससे आगे की लड़ाई की झलक मिल गई। इसलिए उपेंद्र कुशवाहा कोई जोखिम नहीं उठाना चाहते हैं। जानकार सूत्र बताते हैं कि उपेंद्र गांधी मैदान में एक सफल रैली करके एनडीए के सामने एक सम्मानजनक सूचि रखना चाहते हैं। इस सूची पर अगर मुहर लग गई तो ही उपेंद्र कुशवाहा एनडीए में बने रहेंगे वरना कोई दूसरा विकल्प ढूढ़ लेंगे। यह बस मोदी मैजिक ही है जो उपेंद्र को एनडीए में अब तक बनाए रखे हुए हैं वरना मुकम्मल वैकल्पिक तैयारी कर रखी है।
गांधी मैदान में रिकार्डतोड़ रैली करके उपेंद्र कुशवाहा इसी दुविधा से निकलना चाहते हैं। रैली अगर सफल हो गई तो उपेंद्र कुशवाहा को यह तय करने में आसानी होगी कि आगे उन्हें किस रास्ते पर चलना है। रालोसपा के वरिष्ठ नेता अमरेंद्र सिंह कहते हैं कि हम अपने पार्टी कार्यक्रर्मों के आधार पर आगे बढ़ रहे हैं। पूरे सूबे में रालोसपा की लोकप्रियता लगातार बढ़ रही है। 15 अक्टूबर के महासम्मेलन के बाद प्रदेश और देश को उपेंद्र कुशवाहा की राजनीतिक ताकत का अहसास हो जाएगा। बिहार की जनता कुशवाहा को सीएम के तौर पर देखना चाहती है और हम इस दिशा में तेजी से बढ़ रहे हैं। अमरेंद्र सिंह कहते हैं कि लोकतंत्र में जनता मालिक होती है और उसे ही यह तय करना है कि बिहार की नंबर वन की कुर्सी पर कौन बैठेगा। बहरहाल इंतजार 15 अक्टूबर का रहेगा चूंकि उस दिन निश्चित तौर पर प्रदेश की राजनीति में उलटफेर का एक नया पन्ना जुटने वाला है।