राज्यसभा चुनाव को लेकर राज्य में सरगर्मी तेज होती जा रही है, सियासी हलकों में कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। प्रत्याशियों के नाम को लेकर मत्थापच्ची हो रही है। कोशिश की जा रही है कि ऐसे प्रत्याशी को उतारा जाए जिसके नाम पर सहमति बनाई जा सके। जहां एक ओर सत्ताधारी बीजेपी दोनों सीटों पर अपना प्रत्याशी देने की तैयारी में है तो वहीं विपक्ष बीजेपी के दूसरे सीट को जीतने के लिए बनाई जा रही स्ट्रैटजी पर नजर बनाए हुए है। कहा जा रहा है कि बीजेपी दूसरे सीट के लिए कोई स्थानीय प्रत्याशी उतारेगी, इस लिहाज से अर्जुन मुंडा के नाम पर फोकस किया जा रहा है। राज्य में फिलहाल जो सियासी हालात हैं उसमें जिस प्रकार आदिवासी, मूलवासी की राजनीति हो रही है उससे हो सकता है कि अर्जुन मुंडा के नाम को आगे किया जाय। हालांकि, इधर श्री मुंडा के प्रति बीजेपी के आलाकमान के रुख में भी काफी बदलाव आया है जबसे उनके द्वारा त्रिपुरा और गुजरात में प्रचार के बाद पार्टी की जीत हुई है।
बहरहाल, स्थानीय प्रत्याशी और आदिवासी मूलवासी के पॉलिटिकल कार्ड का इस्तेमाल तो विपक्ष भी कर सकती है लेकिन बीजेपी ये मानकर चल रही है कि आजसू के 4 विधायकों के साथ तीन अन्य विधायक भानू प्रताप शाही, शिवपूजन मेहता और गीता कोड़ा एनडीए के प्रत्याशियों के पक्ष में ही वोट देंगे। देखा जाय तो एक उम्मीदवार को जीतने के लिए न्यूनतम 27 वोट चाहिए, बीजेपी के पास आजसू को मिलाकर 47 विधायक हैं, जो एक सीट पर जीत के लिए आवश्यक संख्या से 20 अधिक हैं, यानी तीन निर्दलीय विधायकों को मिला दिया जाए तो ये संख्या 23 हो जाती है दूसरे कैंडिडेट को जिताने के लिए 4 और विधायकों का समर्थन जरूरी है। जानकारों की मानें तो ये तभी संभव है जब कोई ऐसा प्रत्याशी हो जिसका बड़ा कद हो और जो स्थानीय होने के प्रभाव को कैश करा सके। इस लिहाज से अर्जुन मुंडा बीजेपी में सबसे बहुत आगे हैं।