भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह आये और चले गये, गये तो मुख्यमंत्री की पीठ ठोककर गये। रही सही कसर केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह ने दुमका में पूरी कर दी। जो थोड़ी सी आस थी वो भी टूट गयी। सारे सपनों पर पानी फिर गया। सारी सेट की गई फिल्डिंग एकबारगी बिखर गयी। रघुवर सरकार की कुर्सी हिलाने को कई नेताओं ने दिल्ली तक की दौड़ लगाई। पूरी दस्तावेज साथ ले गये। पूरी फेहरिस्त एक के बाद एक दिखाई। इतना ही नहीं आलाकमान ने भी तफ्तीश से एक–एक बात सुनी। पर फिर भी बात नहीं बन पाई। अब अंदर खाने यह कानाफूसी चल रही है कि इन नेताओं के सब्र का बांध टूटने लगा है। अब बर्दाश्त नहीं हो रहा। जो होगा देखा जायेगा। मौका देख कर सरकार के कारनामों को जनता के समक्ष रखा जायेगा।
राजनीतिक गलियारे में यह चर्चा जोरों से चल रही है कि कई विधायक जो रघुवर सरकार के फैसले से पहले से ही नाखुश थे। अब खुल कर सरकार के विरोध में सामने आ सकते हैं। जो लोग झारखण्ड की राजनीति को ठीक से बूझते हैं। वे जानते हैं कि भाजपा या किसी अन्य दल के कई नेता ऐसे हैं कि जो पार्टी से इतर अपनी सोच रखते हैं। जो चुनाव भी अपने दमखम से जीतते आये हैं। और भाजपा की वर्तमान नीतियों का खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ सकता है।
ऐसे में आगामी चुनाव उनके लिए जोखिम भरा हो सकता है। रहा सवाल आलाकमान का तो पार्टी विद डिफरेंस की बात करने वाली भाजपा के दामन पर गुजरात और गोवा के कांग्रेस विधायकों की खरीद- फरोख्त के दाग अभी धुले नहीं हैं।
अपने जीतने की फ़िक्र कईयों को खाए जा रही है। इन्हें लगने लगा है अभी अगर नहीं चेते तो फिर पता नहीं क्या हो। दिल्ली इनकी सुन तो रही है, पर कुछ कर नहीं रही। ऐसे में लगता है कुछ सियासी बम बारूद फटनेवाले हैं।