मनोज कुमार सिंह
केंद्रीय नेतृत्व द्वारा दिए गए निर्देश के अनुरूप मुख्यमंत्री को असंतुष्ट विधायकों एवं पार्टी गतिरोध खत्म करने के लिए उचित कदम उठाने का निर्देश दिया है। इस सुझाव के पश्चात आनन-फानन में 7 फरवरी को कैबिनेट की बैठक नेतरहाट मैं बुलाई गई है। इस कैबिनेट में मंत्रियों के अलावा पार्टी के सभी विधायकों को भी आमंत्रित किया गया है। राज्य सरकार द्वारा जंगल वार फेयर स्कूल में 64 कमरे बुक करवाए गए हैं, जहां मुख्यमंत्री मंत्री एवं विधायकों की ठहरने की व्यवस्था की गई है, इसके अलावा राज्य के आला पदाधिकारियों को भी वही डेरा डालने का निर्देश दिया गया है। कैबिनेट की बैठक के बहाने स्थानीय एवं नियोजन नीति पर उठे विवाद को शांत करने का प्रयास किया जाएगा, यह भी संभव है कि मुख्यमंत्री पूर्व में अपने किए गए आचरण के लिए विधायकों से खेद प्रकट करें और मान-मनौव्वल के लिए विनम्रता का रास्ता अख्तियार करें।
इस बैठक से पार्टी के अंदर यह भी अंदाजा लगाया जाना है कि कितने विधायक सरकार के साथ हैं और कितने विरोध में। एक तरह से देखा जाए तो विधायकों की उपस्थिति के सहारे संगठन यह जानने का प्रयास कर रहा है कि मुख्यमंत्री की विधायकों पर पकड़ का पैमाना कितना रह गया है, उधर दूसरी ओर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा दिल्ली दरबार में पहुंचकर राज्य के हालात की स्थिति आलाकमान को बताएंगे, हो सकता है कि सरजू राय जो एक निजी समारोह में सम्मिलित होने के लिए दिल्ली गया है वह भी संगठन के वरीय पदाधिकारियों से मुलाकात करें। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि विगत 2 दिनों से पार्टी का एक धड़ा विधायकों से अलग-अलग मिलकर उन्हें मनाने और गिला-शिकवा दूर करने का प्रयास कर रहा है। इस काम में कुछ कारपोरेट घरानों से संबंधित लोग भी सक्रिय हैं, कहा तो यह भी जा रहा है कि इन सभी मैनेजमेंट के पीछे राज्य के मुख्य सचिव राजबाला वर्मा का हाथ है, क्योंकि यदि असंतुष्ट विधायकों की संख्या ज्यादा हो जाएगी तो नेतृत्व परिवर्तन के पश्चात सबसे बड़ी परेशानी उन्हीं को होने वाली है। या यूं कहें तो सीधा नुकसान राजबाला वर्मा का ही होगा क्योंकि रिटायरमेंट के तुरंत बाद मुख्यमंत्री के सलाहकार के पद पर अपनी नियुक्ति का सपना देख रही है।
संगठन के कुछ पदाधिकारियों का यह मानना है कि इस काम में बहुत विलंब हो चुका है और डैमेज कंट्रोल शायद ही हो पाए, उनका यह मानना है कि मुख्यमंत्री के क्रियाकलाप से केवल विधायक ही असंतुष्ट नहीं है, बल्कि राज्य के हजारों कार्यकर्ता निराशा में डूब गए हैं। जो पार्टी के लिए हितकारी नहीं है वैसे में केवल विधायकों के मान-मनौव्वल से काम होने वाला नहीं है, हो सकता है कि उठे इस विवाद पर थोड़ी देर के लिए चस्पा लग जाए, लेकिन इसके दूरगामी परिणाम अच्छे नहीं होंगे। पार्टी को स्पष्ट संकेत देना ही होगा कि मुख्यमंत्री अपने प्राइवेट लिमिटेड गुड से बाहर आकर कार्यकर्ताओं में ऊर्जा का संचार करेंगे। उधर विपक्षी पार्टियों के द्वारा यह आरोप लगाया जा रहा है कि राज्य के करोड़ों रुपए पार्टी अपने अंदरूनी झगड़े को निपटाने के एवज में बर्बाद कर रही है, जो राज्य हित में नहीं है यदि पार्टी को ऐसा करना भी था तो वह रांची में रहकर भी कर सकते थे। राज्य की गरीब जनता भी करीब से सब देख रही है और समझ भी रही है, लेकिन बेचारी जनता को तो अपने विचार व्यक्त करने का मौका सिर्फ 5 सालों में ही मिलता है।