मुख्य सचिव राजबाला वर्मा 28 फरवरी को रिटायर हो रही हैं, अपनी कार्यशैली के कारण वो हमेशा सुर्खियों में रहीं। लेकिन उन्होंने सीएस के कार्यकाल में उन्होंने कई ऐसे काम किए जिसकी वजह से राज्य ने नई ऊच्चाईयां हासिल की।
देखा जाय तो राज्य में इस बीच कई बड़े-बड़े सफल आयोजन हुए हैं, मोमेंटम झारखंड के माध्यम राज्य की छवि बदली वहीं इसके बाद कई कंपनियों ने राज्य में निवेश की। उन्होंने लैंड बैंक बनाकर निवेशकों को समय पर जमीन दिलाई जिससे उद्योगपतियों का सरकार के प्रति विश्वास कायम हुआ। प्रशासनिक स्तर पर भी पूरे महकमे को तेज किया इसके लिए लगभग हर दिन वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये जिले के डीसी से लेकर बीडीओ तक के साथ बैठक की। इससे योजनाओं के क्रियान्वयन में तेजी आई और विकास को गति मिली।
हालांकि इन सबके बीच राज्य के कई बड़े अधिकारियों से उनकी अदावत की खबरें भी सुर्खियों में रही। एन.एन.सिन्हा, यूपी सिंह, अमित खरे, एम.एस. भाटिया यहां तक की संजय कुमार से भी अनबन की खबरें आयीं। उनकी कार्यशैली पर कई सवाल भी उठे जिसमें कई पसंदीदा ठेकेदारों को मनमुताबिक काम देने के आरोप उन पर लगे। सीएस राजबाला वर्मा उस समय बुरी तरह से फंसती हुई नजर आईं जब उनके आदेश पर डीबीटी के लिए आधार कार्ड अनिवार्य कर दिया गया जिसके कारण राज्य में करीब 11 लाख कार्ड निरस्त कर दिए गए। इसके बाद सूबे कुछ लाभुकों की मौत के बाद ये मामला पूरे देश की नजर में आ गया था। जिसके कारण सरयू राय ने खुले तौर पर सीएस की कार्यशैली का विरोध किया था।
बहरहाल, सीएस राजबाला वर्मा अपने कार्यकाल के अंत में सबसे ज्यादा विवादों में रहीं, चारा घोटाले में नाम आने के बाद राज्य के इतिहास में पहली बार झारखंड विधानसभा विपक्ष के हंगामे के कारण बजट सत्र बाधित हुआ, इसे समय से पूर्व खत्म किया गया। उनकी कार्यशैली से सूबे के कई जनप्रतिनिधि भी खासे नाराज व्यक्त कर चुके हैं उनक कहना था कि वे किसी की बात नहीं सुनती थीं सिर्फ अपनी मर्जी चलाती थीं।
अब देखना है कि राजबाला वर्मा की विरासत को आनेवाला मुख्य सचिव कैसे और किस राह पर लेकर जाता है। वर्तमान नौकरशाही को वो कैसे दुरुस्त करेगा उसके लिए यह सबसे बड़ी चुनौती होगी।