- सरकार में नहीं है कोल्हान की हैसियत
राज्य निर्माण काल से झारखण्ड की राजनीति में जबरदस्त दखल रखनेवाला कोल्हान क्षेत्र आज राजनीति के हाशिये पर खड़ा है. पूर्वी, पश्चिम सिंहभूम और सराइकेला खरसावाँ के इस विस्तृत जनजातीय इलाके ने राज्य को अर्जुन मुंडा और मधु कोड़ा के रूप में २ आदिवासी और रघुबर दस के रूप में एक गैर जनजातीय मुख्यमंत्री दिए हैं. साथ ही राज्य की सत्ताशीन सरकारों में कई मंत्री. ऐसी कोई भी सरकारें नहीं रहीं जिनमें इस क्षेत्र का प्रभुत्वशाली प्रतिनिधित्य नहीं रहा. मधु कोड़ा, जोबा मांझी, चम्पई सोरेन, बडकुंवर गागराई, स्वर्गीय सुधीर महतो, बन्ना गुप्ता विभिन्न सरकारों में मंत्री रहे और झारखण्ड की राजनीति के भीष्म पितामह बागुन सुम्ब्रुई ने विधान सभा के उपाध्यक्ष पद तक को सुशोभित किया.
राजनीति का यह सक्रिय क्षेत्र आज निष्क्रिय है. यद्यपि राज्य के वर्तमान मुख्यमंत्री और संसदीय कार्य मंत्री सरयू राय इसी क्षेत्र से आते हैं, कोल्हान का दखल राज्य मंत्रिपरिषद में अप्रत्याशित रूप से खासकर पश्चिमी कोल्हान से नगण्य है जो सराइकेला खरसावाँ से पश्चिमी सिंहभूम तक फैला हुआ है. इन जनजातीय इलाकों से एक भी सदस्य राज्य कैबिनेट में नहीं हैं.
सर्वाधिक समय तक मुख्यमंत्री रहे अर्जुन मुंडा वर्तमान राजनीति में हाशिये पर खड़े हैं और पुनर्वास और पुनर्वापसी का प्रयास कर रहे हैं वहीँ मधु कोड़ा आम चुनाव और विधान सभा चुनावों में हार के बाद बियावान में हैं. जगन्नाथपुर विधानसभा क्षेत्र से पत्नी की दुबारा जीत उनकी अकेली उपलब्धि कही जा सकती है. पूर्व मंत्री चम्पई सोरेन, बन्ना गुप्ता और जोबा मांझी विपक्षी खेमें में हैं वहीँ गागराई विधान सभा चुनाव में मिली हार से उबरने की कोशिश में हैं.
क्षेत्र का राजनीतिक परिदृश्य भी 2014 के बाद बदला हुआ है. खांटी और माटी की राजनीति करने वाला यह विस्तृत जनजातीय इलाका, मोदी लहर से अक्षुण्ण रहा और भाजपा की एक नहीं चलने दी. सराइकेला खरसावाँ की दो सीटों और पश्चिम सिंहभूम की पांचो सीटें झामुमो और विपक्ष के खाते में गईं. पूर्वी सिहभूम की बहरागोडा सीट भी झामुमो के खाते गई.
कोल्हान का यह विद्रोही तेवर और धारा के विपरीत चलने की रवायत आगे भी जारी रहने की प्रबल सम्भावना है. अर्जुन मुंडा की उपेक्षा, इस पश्चिमी हिस्से की अपर्याप्त पूछ और जनजातीय कास्तकारी अधिनियमों से छेड़छाड़ ने इस आक्रोश को बढ़ाया ही है.